BA Semester-5 Paper-1 Sociology - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2797
आईएसबीएन :0

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समाजशास्त्रीय चिन्तन के अग्रदूत (प्राचीन समाजशास्त्रीय चिन्तन)

प्रश्न- वेबर के समाजशास्त्र में योगदान पर एक लेख लिखिये।

उत्तर -

वेबर का समाजशास्त्र में योगदान मैक्स वेबर को आधुनिक समाजशास्त्र को एक विशिष्ट सामाजिक विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित करने वाला प्रवर्तक समाजशास्त्री माना जाता है। वेबर ने तत्कालीन जर्मनी के नवकान्तवादी सम्प्रदाय में दीक्षित होने के कारण समाजशास्त्र को एक व्याख्यात्मक और अन्तर्निरीक्षणात्मक विज्ञान बनाने पर जोर दिया। इनकी सर्वाधिक प्रमुख कृति 'रिटशेफ्ट और गैसलशेफ्ट' (1922) थी जिसका अनुवाद अंग्रेजी में 'इकॉनामी एण्ड सोसायटी के रूप में सन् 1968 में हुआ। वेबर के अध्ययन के प्रमुख विषय रहे हैं-

(1) सामाजिक विज्ञानों का दर्शन,
(2) युक्तिकरण
(3) प्रॉटिस्टैंट नैतिकता की धारणा,
(4) मार्क्स और मार्क्सवाद से सम्बन्ध,
(5) जर्मन समाज से सम्बन्धित उनका सत्ता- राजनीति का विश्लेषण आदि 

मैक्स वेबर की समाजशास्त्र की पद्धतिशास्त्रीय और दर्शनशास्त्रीय विचारणाओं को पारम्परिक रूप से नवकान्तवादी दर्शन का एक रूप माना जाता है। यह दर्शन प्रघटना अर्थात् दृश्य जगत और बोधकारी चेतना दोनों में अन्तर करता है। वेबर के समाजशास्त्र में हम यह अन्तर प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों के बीच उनके द्वारा किये गये अन्तर में देखते हैं। सामाजिक विज्ञानों का सम्बन्ध स्वरूपों से है जिनके द्वारा हम विश्व को देखते हैं। इसीलिए प्राकृतिक विज्ञानों में जहाँ सार्वभौमिक नियमों की रचना की जाती है, वहाँ सामाजिक विज्ञानों में यह सम्भव नहीं है। इन विज्ञानों में सामाजिक क्रियाओं की कारणात्मक व्याख्या की जाती है तथा इन्हें ऐतिहासिक सन्दर्भ में समझने पर बल दिया जाता है। यही नहीं, यह माना जाता है कि मानवीय समाज एक संयोग मात्र नहीं है, अपितु यह 'सम्भावनाओं' की एक विधा है। सामाजिक विज्ञानों के अस्तित्व का आधार ही यह है कि मानव प्राणी की अधिकांश क्रियाएँ तर्कसम्मत होती हैं। वेबर ने पशु व्यवहार और ऐसी मानवीय क्रियाओं में अन्तर बताया है जो विवेक सम्मत होती हैं। मानवीय विवेकसम्मतता की कई विशेषताएँ हैं जिनमें प्रमुख हैं चेतना, चिंतन, अभिप्राय प्रयोजन और अर्थ। ये विशेषताएँ पशु व्यवहार में नहीं होती हैं। इसी आधार पर उन्होंने कहा है कि समाजशास्त्र को मानवीय क्रिया के अर्थ और उनके पीछे छिपे विकल्पों का व्याख्यात्मक अध्ययन करना चाहिये। एन. पी. वेबर के अनुसार, समाजशास्त्र के अध्ययन का उपयुक्त एवं मुख्य उद्देश्य सामाजिक क्रिया का अध्ययन करना है। सामाजिक क्रिया से उनका तात्पर्य ऐसी क्रिया से है जो दूसरे व्यक्तियों के प्रति की जाती है और जिनके साथ हम व्यक्तिपरक अर्थ जोड़ते हैं। समाजशास्त्र 'आदर्श प्रारूप' की पद्धति के द्वारा ऐसी क्रियाओं की निर्वचनात्मक व्याख्या करता है। इस सन्दर्भ में वेबर ने सामाजिक क्रिया के चार रूप बताये हैं पारम्परिक, भावनात्मक मूल्यांकनात्मक और तार्किक क्रिया वेबर ने अपने क्रिया सिद्धान्त में विषय-वस्तु को अध्ययन की पद्धति के साथ मिला कर सामाजिक व्यवस्थाओं के साथ व्यक्तियों को जोड़ने का एक ढाँचा प्रस्तुत किया है। वेबर की दृष्टि में क्रिया और अन्तर्क्रिया के आधार पर निर्मित प्रतिमान ही व्यवस्था या प्रणाली की व्याख्या करता है।

दार्शनिक स्तर पर वेबर का प्रमुख योगदान उनका 'मूल्य स्वतन्त्रता' का सिद्धान्त है। वास्तव में, यह उनका अत्यन्त जटिल सिद्धान्त है, जिसे बहुधा भूल से 'वस्तुपरकता के रूप में समझ लिया जाता है। वेबर के समाजशास्त्र का एक मुख्य तत्व तार्किकता या तार्किकीकरण रहा है। वेबर ने तार्किकता का प्रयोग कई विभिन्न ढंग से किया है, किन्तु समाजशास्त्रियों की रुचि विशेष रूप में उनकी औपचारिक तार्किकता की धारणा में रही है जिसका प्रयोग वेबर ने प्रशासनतन्त्र या नौकरशाही के प्रसिद्ध विश्लेषण में किया है। इसके अतिरिक्त वेबर ने तार्किकीकरण का प्रयोग राजनीतिक संस्था के विवेचन में भी किया है और इस सन्दर्भ में उन्होंने तीन प्रकार की सत्ता व्यवस्थाओं उल्लेख किया है- पारम्परिक सत्ता, करिश्माई सत्ता और ताक्रिक वैधानिक सत्ता। समाजशास्त्र में विकासवादी नियमों (सिद्धान्त) के प्रयोग की सम्भावना के प्रति अपनी असहमति प्रकट करते हुए, वेबर ने तार्किकीकरण/युक्तिकरण को पूँजीवादी समाज की एक प्रमुख प्रवृति के रूप में प्रस्तुत किया है। युक्तिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानवीय सम्बन्धों के प्रत्येक क्षेत्र में परिकलन, गणना ओर नियोजन का प्रयोग किया जाता है। वेबर का समाजशास्त्र "तात्विक पीड़ा" से ग्रस्त है जिसमे युक्तिकरण की प्रक्रिया द्वारा पूँजीवादी समाज अन्ततः एक अर्थहीन 'लौह पिंजरे के रूप में बदल जाता है। वेबर ने सामाजिक विज्ञानों में शोध-विधियों के साथ-साथ वस्तुपरकता और मूल्य- तटस्थता जैसे मुद्दों को लेकर सर्वप्रथम एक लम्बी बहस की शुरुआत की। वेबर के अनुसार "समाजशास्त्र क्रिया की व्यक्तिपरक व्याख्या मात्र नहीं है, अपितु एक समाजशास्त्री को "मूल्य तटस्थता " जैसे कुछ मानदण्डों को भी मानना पड़ता है ताकि उसके शोध निष्कर्षों की शैक्षणिक आधार पर परीक्षा और समीक्षा दोनों की जा सके।' वेबर ने यथार्थ को वस्तुपरक रूप में समझने हेतु 'आदर्श प्रारूप की विधि को प्रस्तुत किया है। इस विधि के द्वारा कार्य-कारण सम्बन्धों को भी ठीक प्रकार से समझा जा सकता है। वेबर ने इस विधि का प्रयोग नौकरशाही और विश्व के पाँच धर्मों के अपने अध्ययन में किया है। प्रत्येक धर्म के कुछ सामान्य बहुप्रचलित लक्षणों की खोज कर उन्होंने उक्त धर्म के आदर्श प्रारूप को तैयार किया ताकि उक्त धर्म की तुलना दूसरे धर्म के साथ की जा सके।

वेबर ने इसके अतिरिक्त, सामाजिक स्तरीकरण के एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में "प्रस्थिति समूह" की अवधारणा का प्रयोग किया है। प्रस्थिति समूह से वेबर का तात्पर्य ऐसे समूहों से है जिनमें सकारात्मक और नकारात्मक सम्मानसूचक मानदण्डों और समान जीवन शैली के आधार पर विभेद किया जाता है जैसा कि हमें प्रजातीय और जातीय समूहों में देखने को मिलता है। भारत की जातियाँ मैक्स वेबर की दृष्टि में प्रस्थिति समूह ही हैं।

उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि मैक्स वेबर ने समाजशास्त्र के कई भिन्न विषयों में योगदान दिया है। जहाँ उन्होंने एक ओर सामाजिक विज्ञानों को एक दार्शनिक आधार दिया है, वहीं दूसरी ओर, समाजशास्त्र को सामाजिक क्रिया सिद्धान्त के रूप में एक सामान्य सैद्धान्तिक ढाँचा प्रदान किया है। उन्होंने विश्व के छः प्रमुख धर्म नगरीय समाजशास्त्र, प्राचीन समाज और आधुनिक औद्योगिक पूँजीवादी सभ्यता, कानून का समाजशास्त्र, संगीत का समाजशास्त्र, आर्थिक इतिहास जैसे अनेक विषयों पर लिखा है। वेबर ने 'सांस्कृतिक समाजशास्त्र के क्षेत्र में भी योगदान किया है और पूँजीवादी आधुनिकीकरण के प्रति उनका अलोचनात्मक दृष्टिकोण रहा है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति क्या है? इसके प्रमुख प्रभाव बताइए।
  5. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव बताइए।
  6. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक प्रभाव बताइये।
  7. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक प्रभाव बताइए।
  8. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या अच्छे प्रभाव हुए।
  9. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या बुरे प्रभाव हुए।
  10. प्रश्न- राजनीतिक व्यवस्था से क्या आशय है? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  11. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  12. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्तियों ने कैसे समाजशास्त्र की आधारशिला एक स्वतन्त्र अध्ययन के रूप में रखी? विवेचना कीजिए।
  13. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के क्या सामाजिक एवं राजनीतिक परिणाम हुये?
  14. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास को संक्षेप में समझाइये।
  15. प्रश्न- ज्ञानोदय से आप क्या समझते हैं। वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति और सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञाकि पद्धति के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- "समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है।" विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
  18. प्रश्न- समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिये।
  19. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र का महत्व बताइये।
  20. प्रश्न- कॉम्ट के प्रत्यक्षवाद की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- कॉम्टे द्वारा प्रतिपादित चिन्तन की तीन अवस्थाओं के नियम की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  22. प्रश्न- कॉम्टे की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिये।
  23. प्रश्न- अगस्त कॉम्ट का जीवन परिचय दीजिए।
  24. प्रश्न- कॉम्ट के मानवता के धर्म का नैतिकता आधार क्या है?
  25. प्रश्न- संस्तरण के आधार अथवा सिद्धान्त बताइये।
  26. प्रश्न- समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की मुख्य विशेषतायें कौन-कौन सी हैं?
  27. प्रश्न- कॉम्ट के विज्ञानों का वर्गीकरण प्रत्यक्षवाद से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  28. प्रश्न- कॉम्ट की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिए।
  29. प्रश्न- प्रत्यक्षवाद क्या है?
  30. प्रश्न- कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद को परिभाषित कीजिये।
  31. प्रश्न- तात्विक अवस्था क्या है?
  32. प्रश्न- सामाजिक डार्विनवाद से आपका क्या तात्पर्य है?
  33. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक उद्विकास' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  34. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का जीवन परिचय दीजिए।
  35. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर के 'सामाजिक नियन्त्रण के साधन' सम्बन्धी विचार बताइए।
  36. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित सावयवी सिद्धान्त की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- समाजशास्त्र के क्षेत्र में हरबर्ट स्पेन्सर के योगदान का उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अधिसावयव उद्विकास की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक एकता के सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- यान्त्रिक व सावयवी एकता से सम्बन्धित वैधानिक व्यवस्थाएं क्या हैं?
  41. प्रश्न- दुर्खीम के श्रम विभाजन सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को समझाइए।
  43. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइए।
  44. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।
  45. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा वर्णित आत्महत्या के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  48. प्रश्न- दुखींम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  49. प्रश्न- दुखींम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया, व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुखींम की देन की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- श्रम विभाजन समझाइये।
  54. प्रश्न- दुर्खीम ने यान्त्रिक तथा सावयवी एकता में अन्तर किस प्रकार किया है?
  55. प्रश्न- श्रम विभाजन के कारण बताइए।
  56. प्रश्न- दुखींम के अनुसार श्रम विभाजन के कौन-कौन से परिणाम घटित हुए? स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  58. प्रश्न- श्रम विभाजन, सावयवी एकता से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  59. प्रश्न- यान्त्रिक संश्लिष्टता तथा सावयविक संश्लिष्टता के बीच अन्तर कीजिए।
  60. प्रश्न- दुर्खीम के सामूहिक प्रतिनिधान के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  61. प्रश्न- दुर्खीम का पद्धतिशास्त्र पूर्णतया समाजशास्त्री है। विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- सामाजिक एकता क्या है?
  63. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या के कारणों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- सामाजिक एकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- सामाजिक तथ्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित 'समाजशास्त्रीय पद्धति' के नियम क्या हैं?
  69. प्रश्न- दुखींम की सामाजिक चेतना की अवधारणा का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  71. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  72. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- पैरेटो ने समाजशास्त्र को एक तार्किक प्रयोगात्मक विज्ञान नाम क्यों दिया? उनकी तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- "इतिहास कुलीन तन्त्र का कब्रिस्तान है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- पैरेटो की तार्किक एवं अतार्किक क्रियाओं की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  79. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइए।
  80. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिए।
  81. प्रश्न- परेटो का समाजशास्त्र में योगदान संक्षेप में बताइए।
  82. प्रश्न- तार्किक और अतार्किक क्रिया की तुलना कीजिए।
  83. प्रश्न- पैरेटो के अनुसार शासकीय तथा अशासकीय अभिजात वर्ग की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
  84. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  85. प्रश्न- मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा क्या है? समझाइए।
  86. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  88. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  89. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  90. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  91. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  92. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- पूँजीवादी समाज में अलगाव की स्थिति तथा इसके कारकों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- संक्षेप में अलगाव के स्वरूपों को समझाइये।
  95. प्रश्न- मार्क्स ने पूँजीवाद की प्रकृति के विनाश के किन कारणों का उल्लेख किया है?
  96. प्रश्न- पूँजीवाद में ही वर्ग संघर्ष अपने चरम सीमा पर क्यों पहुँचा?
  97. प्रश्न- मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  100. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  102. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिये।
  103. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  104. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  105. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  106. प्रश्न- मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या किस तरह से की?
  107. प्रश्न- मार्क्स की सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या में प्रमुख कमियाँ क्या रहीं?
  108. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  109. प्रश्न- कार्ल मार्क्स का संक्षिप्त जीवन-परिचय तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  112. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  113. प्रश्न- वर्ग को लेनिन ने किस तरह से परिभाषित किया?
  114. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन सा स्वरूप पाया जाता था?
  115. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- सामंती समाज में वर्ग व्यवस्था का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  117. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति के महत्व एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के इतिहास दर्शन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के अनुसार वर्ग की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  121. प्रश्न- समाजशास्त्र के संघर्ष सम्प्रदाय में मार्क्स और डेहरनडार्फ की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- मार्क्स के विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
  123. प्रश्न- "हीगल ने 'आत्म-चेतना' के अलगाव की चर्चा की है जबकि मार्क्स ने श्रम के अलगाव की।" स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के आवश्यक लक्षणों की आलोचनात्मक परीक्षा कीजिए।
  126. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  127. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  128. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइये। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  130. प्रश्न- सत्ता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। सत्ता कितने प्रकार की होती है?
  131. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा वर्णित सत्ता के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
  133. प्रश्न- वेबर के धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइए।
  134. प्रश्न- आदर्श प्रारूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर के "पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी विचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
  136. प्रश्न- वेबर के समाजशास्त्र में योगदान पर एक लेख लिखिये।
  137. प्रश्न- मैक्स वेबर का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
  138. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  139. प्रश्न- मैक्स वेबर की प्रमुख रचनाएँ बताइए।
  140. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  142. प्रश्न- मैक्स वेबर के आदर्श प्रारूप पर टिप्पणी लिखिए।
  143. प्रश्न- प्रोटेस्टेण्ट आचार क्या है? व्याख्या कीजिए।
  144. प्रश्न- मैक्स वेबर के सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  145. प्रश्न- सामाजिक विचार के सन्दर्भ में मैक्स वेबर के योगदान का परीक्षण कीजिए।
  146. प्रश्न- शक्ति की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  147. प्रश्न- दुर्खीम एवं वेबर के धर्म के सिद्धान्त की तुलना आप किस तरह करेंगें?
  148. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान की पद्धति के निर्माण में मैक्स वेबर के योगदान का वर्णन कीजिए।
  149. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक क्रिया' के वर्गीकरण का परीक्षण कीजिए।
  150. प्रश्न- अन्तः क्रिया का क्या अर्थ है? अन्तःक्रिया के प्रकारों का उल्लेख करिये।
  151. प्रश्न- प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद क्या है? प्रतीकात्मक अन्तर्क्रियावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ समझाइये।
  152. प्रश्न- जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद बतलाइये।
  153. प्रश्न- मीड का भूमिका ग्रहण का सिद्धान्त समझाइये।
  154. प्रश्न- प्रतीकात्मक का क्या अर्थ है?
  155. प्रश्न- प्रतीकात्मकवाद की विशेषताएँ बताइये।
  156. प्रश्न- प्रतीकों के भेद या प्रकार बताइये।
  157. प्रश्न- सामाजिक जीवन में प्रतीकों का क्या महत्व है?
  158. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  159. प्रश्न- टालकाट पारसन्स का "सामाजिक क्रिया" का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिये।
  160. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  161. प्रश्न- आर. के. मर्टन का संक्षिप्त जीवन परिचय व रचनाएँ लिखिए।
  162. प्रश्न- आर. के. मर्टन की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  163. प्रश्न- आर. के. मर्टन की बौद्धिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  164. प्रश्न- मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त का अर्थ व प्रकृति को समझाइये।
  165. प्रश्न- आर. के. मर्टन का "प्रकट एवं अव्यक्त कार्य सिद्धान्त को समझाइये।
  166. प्रश्न- टॉलकाट पारसन्स के पैटर्न वैरियबल की चर्चा कीजिये।

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